Friday, July 27, 2012

नारी का अपमान



कुछ दिनों पूर्व असम मे एक लड़की को तीस-चालीस लड़कों ने बेरहमी से पीटा। कुछ उसे पीट रहे थे और कुछ उसके वस्त्र फाड़ रहे थे। लड़की चीखती-चिल्लाती रही, मदद की गुहार लगाती रही, परंतु इस क्रूर तमाशे को देखने वाली भीड़ मे कुछ धृतराष्ट्र थे, कुछ भीष्म और कुछ विदुर। उन दरिंदों को रोकता कौन? जो रोकता वही मार ख़ाता। दरअसल बहादुरी घरों की चारदीवारियों मे क़ैद होकर रह गई है।

यदि किसी लड़की का सामूहिक बलात्कार होता है तो होने दो, किसी के बाप का क्या जाता है। लोगों को चिंता केवल अपनी बहू-बेटियों की सुरक्षा की है। लेकिन कब तक? गिद्धों की दृष्टि से कोई कब तक बचेगा? क्या किसी लड़की पर कुदृष्टि डालना बलात्कार से कम है?

आधुनिक युग मे ज्ञान के मंदिर भगवान के मंदिर से बड़े हो गए लेकिन कहीं भी नारी का मान सुरक्षित नही रहा। क्या शहर और क्या गाँव, चारों तरफ नारी केवल भोग की वस्तु बनकर रह गई है। प्रतिपल नारी यौन उत्पीड़न का शिकार बन रही है।

वासना का भूत सभ्यता की कृत्रिमता को भस्म कर देता है। यह सदा से होता आया है। वर्तमान काल की घटनाएँ अतीत की घटनाओं की केवल पुनरावृत्ति बनकर रह गई हैं।

आदिकाल से भारतवर्ष मे नारी पूजनीय रही है। यहाँ नारी को देविरूपा माना गया है। किसी नारी को संबोधित करने के लिए देवी शब्द का प्रयोग केवल इसी देश मे किया जाता है। परंतु दुर्भाग्य है कि आदिकाल से इसी धरा पर नारी का अपमान भी होता रहा है। फिर चाहे वह त्रेता युग मे सीता का अपमान हो, द्वापर युग मे द्रौपदी का या इस कलयुग मे अनगिनत नारियों का। ना केवल भारतवर्ष बल्कि संपूर्ण विश्व मे नारी सदा से तिरस्कृत होती रही है।

सामाजिक संरचना मे नारी का अस्तित्व शून्य है। समाज ने उसे माँ, बहन, बहू और बेटी का दर्जा अवश्य दिया है, परंतु इसी समाज के एक अंग ने नारी को केवल शारीरिक संतृप्ति का माध्यम करार दिया है। यही कारण है वेश्यावृत्ति विभिन्न स्वरूपों मे प्राचीन काल से प्रचलन मे है।  

कुछ समाज के ठेकेदारों का कहना है कि लड़कियों को सौम्य वस्त्र धारण करना चाहिए, ना कि उत्तेजक वस्त्र जैसे जीन्स। यदि ऐसा है तो साड़ी एवम् सलवार कुर्ता पहनने वाली महिलाओं का बलात्कार क्यों होता है? और यदि लड़कियाँ जीन्स ना पहनकर पारंपरिक परिधान पहनने लगें तो क्या घात लगाने वाले कपड़ों की ओट मे छिपे जानवर साधुओं का मार्ग अपना लेंगे?

जब पश्चिम मे नारियों के वस्त्र छोटे हो रहे थे तब परंपरावादी भारत मे रुपहले पर्दे पर मादक परिधानों मे लिपटी अभिनेत्रियों को थिरकते हुए लोग बड़े चाव से देखते थे। आश्चर्य है यही लोग भारत के उच्च वर्ग मे पनपती विदेशी संस्कृति को निर्लज्जता कहते थे। विदेशी हमेशा उन्मुक्त रहे, भारत मे नग्नता को छुपकर देखने का रिवाज रहा है। दमन बुद्धि को नकारात्मक बना देती है। यही दशा पुरुषों के चरित्र के ह्रास का कारण बनती है।

इसका यह अर्थ कतई नही है कि नारी के अपमान के लिए केवल पुरुष ही ज़िम्मेदार है, बल्कि नारी भी कुछ हद तक दोषी है। यह विडंबना ही है कि नारी पढ़ी-लिखी होने के बाद भी विवाह के पश्चात पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा रखती है। पुत्र और पुत्री मे भेदभाव करती है। पूर्व की अपेक्षा वर्तमान मे यह पक्षपात कम तो हुआ है, परंतु ख़त्म नही।

यही हाल सास-बहू के संबंधो का है। ऐसा बिरले ही होता है जब कोई सास अपनी बहू को बेटी का दर्जा देती हो। यह नारी का नारी के प्रति असम्मान का प्रथम चरण होता है। बहुओं का शोषण और दहेज प्रताड़ना जैसी सामाजिक कुरीतियाँ इसी असम्मान की पराकाष्ठा हैं।

परिधानों का चुनाव नारी के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। जीन्स मे कोई बुराई नही है क्योंकि इसे समस्त भारतवर्ष ने स्वीकार कर लिया है। परंतु छोटे कपड़े पहनने का प्रचलन अभी भी सीमित है। अधिकाँशतः लड़कियाँ अथवा महिलाएँ छोटे कपड़े पहनने के बाद असहज महसूस करती हैं परंतु सुंदर दिखने की चाह मे वे ऐसा करने से हिचकतीं भी नही। हालाँकि इसका निर्णय केवल नारी ही ले सकती है कि उसे ऐसे परिधान पहनने चाहिए कि नही।

कारण जो भी हो, नारी अपमानित हो रही है। पांडव आज भी अल्प हैं और कौरवों की संख्या मे अनवरत बढ़ोतरी हो रही है। आधुनिक युग मे द्रौपदी का चीरहारण जारी है।   




Wednesday, July 11, 2012

आम आदमी का मज़ाक


आम आदमी का मज़ाक

चिदंबरम जी, 

आप कहते हैं आम आदमी बोतलबंद पानी और आइसक्रीम खरीदने से नही हिचकता किंतु अनाज के दाम एक रुपये बढ़ने पर हाहाकार मचाता है। क्या आपका आशय यह है कि आम आदमी आइसक्रीम खाकर पेट भरता है और बोतलबंद पानी पीकर प्यास बुझाता है? यदि वह ऐसा करेगा तो अनाज के दामों मे बढ़ोतरी पर चिल्ल-पों क्यों मचाएगा? आप स्वयं ही विरोधाभासी बातें कर रहे हैं, परंतु लगता है जैसे आप अपने बेसिरपैर की कथनी से पूर्णतः अनभिज्ञ हैं।

आप कहते हैं आपने विदेश जाकर अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है फिर आप स्वदेश मे इस तरह की अनर्थक बातें क्यों कर रहे हैं? ऐसा प्रतीत होता है जैसे देश की तरह आपकी बुद्धि का विकास दर (growth rate) भी कम होता जा रहा है और मोटाई (inflation) बढ़ती जा रही है। घबराईए मत, यह बीमारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया  और आपकी पार्टी के अनेक सदस्यों को भी है।

दरअसल सरकारी पैसों पर अय्याशी करते करते आप जैसे नेता यह भूल जाते हैं कि जिस जनता ने आपको गद्दी पर बैठाया है वह अभी भी कंगाल है। आप सोचते हैं जैसे आपके इर्द-गिर्द चाटुकार थालियों मे नोटों की गड्डीयाँ सजाकर आपके मुँह मे ठूँसने के लिए तत्पर रहते हैं, वैसे ही किराना दुकान वाला आम आदमी को दो रुपये का पार्ले जी बिस्कुट खरीदने पर एक बोतलबंद पानी और एक आइसक्रीम मुफ़्त मे देता होगा।

आप लोग आम आदमी के पैसों से देश चलाते हैं और उसी पर धौंस जमाते हैं? हद हो गई बेशर्मी की! आश्चर्य है कि आपको गोदामों मे खुले आसमान के नीचे रखे अनाज बारिश मे सड़ते हुए नज़र नही आते लेकिन आम आदमी के जेब मे रखे हुए एक रुपये को आप अपनी गिद्ध जैसी पैनी दृष्टि से आसानी से देख लेते हैं!

चिदंबरम जी, आपका अहंकार आपके लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। यह सत्य है कि करोड़ों आम आदमी जितना जीवन भर कमाते हैं उतना आप जैसे नेता अपनी औलादों के नखरे उठाने मे फूँक देते हैं। आप अनाज की बात करते हैं, आपकी सरकार का बस चले तो आम आदमी से जीवित रहने का कर लेने से भी नही चूकेगी।

आप लोगों ने महँगाई को वेताल की तरह आम आदमी की पीठ पर लाद दिया है। आपने कभी किसी आम आदमी के घर जाकर देखा है? आपको एहसास होगा कि आम आदमी का घर छोटा होता है लेकिन दिल बड़ा। उसकी रसोई भले ही खाली दिखेगी लेकिन आपकी थाली मे उसकी हैसियत से अधिक का भोजन होगा, शुद्ध घी से तर। 

आप भले ही आम आदमी के लिए सस्ते अनाज की घोषणा करके अपनी पीठ थपथपाने से बाज़ नहीं आएँगे परंतु वह आपको महँगा और पौष्टिक अनाज खिलाकर भी शालीनता से कहेगा - 'माफ़ कीजिए! भोजन आपके लायक नही था, फिर भी आपने हमारा मान रखा'। अंत मे वह आपको नामी गिरामी कंपनी की बोतलबंद पानी पिलाएगा और उच्च स्तर की आइसक्रीम खिलाएगा। वह यह सब इसलिए करेगा क्योंकि वह मेहमान को भगवान समझता है। उसकी यह समझ उसके संस्कार से आई है। 

लेकिन आपके संस्कार को क्या हुआ? जिस आम आदमी ने अपनी किस्मत की लकीर काटकर आपकी किस्मत चमका दी, आप उसी का मज़ाक उड़ा रहे है? आपने तो यह भी जानने की आवश्यकता नही समझी कि आम आदमी को जो अनाज सरकार कम दामों पर उपलब्ध कराती  है वह खाने लायक है या नही। यदि आप लोग संवेदनशील होते तो लाखों गर्भवती महिलाएँ और बच्चे कुपोषित क्यों होते, देश मे इतना अनाज होते हुए भी कोई भूखा क्यों सोता और आपको राजा बनाने वाले खुद भिखारी क्यों होते?