Thursday, November 21, 2013

छेड़खानी के बाद माफी? सवाल ही नही उठता..


Yogesh Mishra 


Raipur November 21, 2013 

अप्रिय तरुण तेजपाल

तुम तहलका के प्रमुख संपादक हो। सर्वोच्च पद पर रहते हुए भी तुमने पहले अपनी कनिष्ठ महिला पत्रकार का यौन उत्पीड़न किया और अब बिना सज़ा भोगे माफी माँग रहे हो। क्योंक्या यही हरकत कोई अंजान व्यक्ति तुम्हारी माँबहनबहू अथवा बेटी के साथ करता तो तुम उसे माफ़ कर देतेकभी नही। तुम तो तहलका मचा देते। तुम न्याय की बात करतेक़ानून की बात करतेअदालत की बात करते और समाज के गिरते हुए स्तर की बात करते। लेकिन जब बात तुमपर बन आई है तो किसी तरह से इस मामले को रफ़ा-दफ़ा करना चाहते हो।

यह दोगलापन क्योंतुम्हें इतना ही प्रायश्चित करने का शौक था तो पुलिस थाने जाते और अपना अपराध स्वीकार करतेन्यायालय मे कड़ी से कड़ी सज़ा माँगते ताकि समाज मे छिपे तुम्हारे जैसे सफ़ेदपोश चरित्रहीन लोग ऐसी हरकत करने की जुर्रत ना करते। परंतु तुमने तो बिल्कुल ही आसान रास्ता अख्तियार कर लिया - यौन शोषण करोमाफी माँगो और फिर यौन शोषण करोमाफी पुनः मिल जाएगी। इस तरह तो तुमने चरित्रहीनों के लिए नया मार्ग खोल दियानयी परिपाटी की शुरुआत कर दी।

वाह रे ईमानदार खोजी पत्रकारतुम्हारी चरित्रहीनता ने फिर यह सिद्ध कर दिया कि बड़ी बड़ी संस्थाओं मे उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति अपनी वासनापूर्ति के लिए कैसे प्रलोभन देकर महिलाकर्मियों का शोषण करते हैं। तुम जैसे वहशी दरिंदों की वजह से ही छोटे शहरों मे रहने वाले लोग अपनी लड़कियों को बड़े शहरों मे नौकरी करने नही देते।


इसलिए तुम्हारी सज़ा तो बनती है। क़ानून की नज़रों मे तुम अपराधी हो और जनता की आँखों मे विश्वासघाती क्योंकि तुमने स्वयं को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का प्रतिनिधि बताकर समाज को दूषित किया है। तुम कठोर से कठोर सज़ा के हकदार हो।

मेरा सुझाव है कि तुम्हे पहले पीड़ित लड़की के परिवार वालों से पिटवाया जाए फिर जनता पिटाई करे और अंत मे पुलिस तुम्हारी मर्दानगी को अंतिम विदाई दे। इसके बाद भी सज़ा की गुंजाइश बचती है क्योंकि तुम एक पढ़े-लिखे ज़िम्मेदार व्यक्ति हो।

Thursday, October 10, 2013

अलविदा सचिन

October 10, 2013


सचिन, 1989 मे जब तुमने पहली बार देश का प्रतिनिधित्व किया तो लगा जैसे कोई अपना बाल सखा खेल रहा है। जब-जब तुम खेले, लगा मैं खेल रहा हूँ। तुम्हारी हर उपलब्धि मुझे अपनी लगती थी। हर चर्चा मे तुम्हारा नाम होता था - "यार सचिन टिका रहा इसलिए जीत पाए  लड़के मे दम है बॉस ये साले पाकिस्तानी, सचिन को क्या आउट करेंगे, देखा ना - शोएब अख़्तर को कैसे धोया था पिछली बार। अबे तू ना, फोकट के ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की तारीफ कर रहा है, अपने पास सचिन है बाबा, फिर द्रविड़ और गांगुली उनकी सटका देंगे।भाई जैसा भी पिच कंडीशन हो, छोकरा अगर शुरू के ओवर्स निकाल लेगा ना, तो इंडिया आराम से जीतेगी।"

शायद यही हाल देश के लाखों-करोड़ों लोगों का भी रहा होगा, तभी तो तुमसे उम्मीदें भी ऐसी रखते थे जैसे कोई अपनों से रखता है। जितना तुम खेल के प्रति समर्पित रहे, उतना ही देश तुम्हारे प्रति रहा। दोस्त, एक तुम ही तो हो जिसने क्रिकेट को धर्म मे तब्दील कर दिया।

एक समय यह भी आया जब लोग तुम पर आरोप लगाने लगे कि तुम केवल रिकॉर्ड के लिए खेलते हो। लेकिन मेरे जैसे और कई खेल प्रेमी हैं जिन्होंने तुम्हें लंबी नाकामी के बावजूद खेलने के लिए उतना ही आतुर देखा जैसे कोई नन्हा मासूम खिलौनों को देखकर अधीर हो उठता है।

मित्र - तुम खूब खेले, अब विदाई की बारी है। मैने कल्पना की थी कि खेल के ऐसे पड़ाव मे तुम अपना बल्ला अंतिम बार उठाओगे जब समुचा देश तुम्हे और खेलते हुए देखना चाहेगा परंतु ऐसी स्वर्णिम विदाई सभी के भाग्य मे नही होती, अत्याधिक प्रतिभाशाली व्यक्तियों के भाग्य मे तो शायद नही ही होती।


इन 24 सालों मे हम दोनो ही चालीस के हो गए। चर्चाओं का दौर काफ़ी पीछे छूट चुका है। जब तुम अपनी उपलब्धियाँ बढ़ा रहे थे, मैं स्थायित्व की खोज मे संघर्ष कर रहा था। अब हम खेल के मैदान मे फिर ना मिलेंगे। तुम अपनी सुध लो और मैं अपनी। अलविदा..

Thursday, September 12, 2013

कांग्रेस की राजनीति ग़रीबों के इर्द-गिर्द ही क्यों घूमती है?


Raipur, September 12, 2013

राहुल गाँधी कहते हैं कांग्रेस हमेशा से ग़रीबों की लड़ाई लड़ रही है। सही बात है। पिछले साठ वर्षों से कांग्रेस ने ग़रीबों के लिए ऐसी लड़ाई लड़ी कि मध्यम वर्ग के लोग ग़रीब हो गए और ग़रीब बन गए भिखारी। बच गए अमीर - जो कांग्रेसी खाद खाकर और अमीर हो गए। 

परंतु राहुल जी, आपका मंतव्य यह नही है। आप तो दरअसल यह दर्शाना चाहते हैं कि भारतवर्ष मे यदि कोई राजनैतिक दल ग़रीबों का मसीहा है तो वह है कांग्रेस। और यह आप इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आप जानते हैं कि आपके दल ने कभी ग़रीबों को आर्थिक रूप से मजबूत होने नही दिया। तंगहाली और परेशानियों मे जीने वाला ग़रीब आपके दल की झूठी संवेदनाओं मे अपना सुनहरा भविष्य खोजने लगता है और इसी भावावेश मे आपको फिर वोट दे बैठता है। 

राहुल यदि यह कहते हैं कि ग़रीबी एक मानसिकता है तो सत्य कहते हैं। महलों मे रहने वाले लोग ग़रीबी के यथार्थ को कतई स्वीकार नही कर सकते। उनके लिए ग़रीब केवल कहानियों के कमजोर पात्र हैं। इसलिए गंदगी से बजबजाति नालियों के मुहाने जर्जर झोपड़ियों मे रहने वाले चीथड़ों मे लिपटे हुए लोग उनको व्यथित नही करते क्योंकि उनकी सरकार तो इन्हें ग़रीब मानती ही नही। 

राहुल यह भी कहते हैं कि वे आम जनता के सपनो को पूरा करने के लिए अपने सपनों को कुचलने के लिए तैयार हैं। अब उन्हें कौन समझाए कि कांग्रेस राज मे आम जनता को नींद ही नही आती, वह सपने क्या खाक देखेगी। 

दरअसल कांग्रेस राज मे सपने देखने का हक केवल नेहरू-गाँधी परिवार को होता है। इस बात का इतिहास भी साक्षी है। पूर्व मे नेहरू ने अपने सपनों को साकार करने के लिए जनता के सपनों को दरकिनार कर दिया। वरना सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते और सुभाष चंद्र बोस भारत आ जाते। फिर इंदिरा की महत्वाकांक्षा, संजय के तेवर, राजीव की अधीरता ने कितनों के सपने कुर्बान किए, कौन जानता है। सोनिया प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं, नही बन सकीं। अब हठ तो पूरा करना ही था। इसलिए उन्होने प्रणब जैसे काबिल व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद से वंचित कर मनमोहन को तरजीह दी। कारण साफ था और मंशा एक ही थी - रोबोट को चलाने वाला रिमोट अपने पास रखना। इसलिए आपके मुँह मे ऐसी आदर्शवादी बातें शोभा नही देती। बेहतर है, सत्य बोलिए और कहिए कि आप प्रधानमंत्री बनने का सपने देख रहे हैं और वो भी अपने दल के काबिल दावेदारों के सपनों को कुचलकर।

परंतु राहुल को एक बात ध्यान रखना चाहिए - आम चुनाव मे जनता उनकी तुलना करेगी नरेंद्र मोदी से। यह तुलना होगी अपरिपक्वता व अनुभव की। देश का हाल किसी से छुपा नही है। हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई है। केवल ग़रीबी का राग अलापने से कुछ हासिल नही होगा, स्वयं को काबिल साबित करने के लिए सुधारवाद की प्रक्रिया मे अपना योगदान देना होगा। राहुल जी, पहले कुछ उपलब्धि हासिल कर लें फिर उच्च पद की दावेदारी ठोकें, जनता ज़रूर सुनवाई करेगी।

दिग्विजय सिंह जी, बड़बोलापन ठीक नही..

Raipur, July 09, 2013

दिग्विजय सिंह जी, पिछले कुछ वर्षों से आप भाजपा नेताओं पर लगातार हमला बोल रहे हैं। आश्चर्य है, आपके इतना चीखने-चिल्लाने के बावजूद वरिष्ठ भाजपा नेता आपके खिलाफ एक शब्द नही बोलते। इसका अर्थ तो यही है कि भाजपा की नज़रों मे आपका अस्तित्व शून्य है। 

यही हाल आपका अपने दल मे भी है, आप जब-जब भाजपा के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करते हैं, आपका दल आपसे किनारा कर लेता है। 

दिग्विजय सिंह जी, इस तरह की हल्की व फालतू बातें कर अपनी उर्जा का ह्रास ना करें, बल्कि ऐसा सकारात्मक कार्य करें जिससे आपका दल 2019 के आम चुनाव मे अपनी दावेदारी मजबूती के साथ पेश कर सके।

रही बात 2014 के आम चुनाव की - तो उसमे कांग्रेस का क्या हाल होगा आप भी जानते हैं क्योंकि आपके दल की गिरती साख की एक वजह आप और बेनी जैसे व्यक्ति हैं। हाँ, 2014 के चुनाव परिणाम के बाद आपका दल आपकी क्या दुर्दशा करेगा शायद आप नही जानते, लेकिन जनता जानती है, इसलिए बड़बोलापन ठीक नही, यदि जनता ने बोलना आरंभ कर दिया तो आप खामोश हो जाएँगे..

सीडी का डर


Raipur, July 07, 2013


मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री राघव की अश्लील सीडी के खुलासे से छत्तीसगढ़ के एक बदतमीज़ मंत्री के होश फाख्ता हो गए हैं। इस मंत्री को डर है कि कहीं उसके दुर्व्यवहार से पीड़ित उसका कोई नौकर, समर्थक अथवा दल का कार्यकर्ता उसके भ्रष्टाचार, व्यभिचार और अनाचार की सिलसिलेवार कहानी सीडी मे जारी ना कर दे। 


इस सिरफिरे मंत्री का भय जायज़ है क्योंकि इसने प्रदेश मे ऐसी गंदगी मचा रखी है कि इसके सहयोगी मंत्री एवम् दल के कार्यकर्ता भी तंग आ गए हैं। इस असभ्य भाषी मंत्री के तू-तड़ाक वाले रवैये से अनेक समर्पित कार्यकर्ता आहत हैं। अधिकांश कार्यकर्ता कामना कर रहे हैं कि आने वाले विधान सभा चुनावों मे इसकी जमानत जब्त हो जाए - जो कि संभव है। 



कहते हैं पिछले दस सालों मे इस मंत्री ने जितना कमाया है उतना किसी कांग्रेसी मंत्री ने साठ सालों मे नही कमाया होगा। बहुतों को उसकी हार का इंतज़ार है - वह हारा और वे उसपर टूट पड़ेंगे। बहरहाल इस मंत्री से पीड़ित लोग इसका हश्र राघव की भाँति होता देखना चाहते हैं - केवल इंतज़ार है तो एक गंदगी सॉफ करने वाले पटेरिया का !!!

We don't want politicians in disaster-hit places


Dear politicians,

Kindly stay away from Uttarakhand and never try to visit any of the disaster-hit places in future. The entire humankind is ashamed of your existence on earth. 

The people were dying in Uttarakhand and you were counting them as your vote bank. Shame on you! This is height of impassivity. 

For you people, it is not a disaster in Uttarakhand but a debatable subject to discuss on in print, electronic and social media. You guys are asking each other's party not to politicize the incident but are doing the same on daily basis. 

While you people don't do anything except barking, see how silently and gravely the army jawans are rescuing every victim. At least, try to learn from them and if you can't do anything for the victims, just donate all your money for relief operations. 

I was thinking to write some lines to pay tribute to the people who fell prey to the nature's fury in the Himalayan state but couldn't as I failed to find appropriate words but you politicians are talking in volumes about this incident. I urge you to stop all your nonsense talks and shove off from Uttarakhand right now.

Thursday, May 2, 2013

पाकिस्तान को धोने का समय आ गया है


May 2, 2013

अब समय आ गया है पाकिस्तान पर हमला करने का। सरबजीत सिंह की हत्या का ज़िम्मेदार भारत सरकार भी है जिसने 22 सालों तक पाकिस्तान से कुछ भी नही कहा। अफ़सोस, मनमोहन और सोनिया यह तमाशा चुपचाप देखते रहे। अब जब सरबजीत नही रहा तो भारत सरकार कांव-कांव कर रही है।

अरे पाकिस्तानियों, एक आम भारतीय को मरने से तुम्हें क्या मिला? मारना ही था तो भारत के किसी भ्रष्ट नेता को मार देते। मनमोहन और सोनिया तो इतने देशभक्त हैं कि सरबजीत को रिहा करने के एवज मे तुम्हें अपने परिवार के लोगों को तक सौंप देते। लेकिन नीच देश के नीच सियासतदारों, तुम सब हैवान हो। अब परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ।

आज नही तो कल, कोई-ना-कोई मर्द भारत का प्रधानमंत्री बनेगा, तब तुम्हारा क्या होगा? तुम्हारे पाकिस्तान की धज्जियाँ उड़ जाएँगी। लाहौर, कराची, इस्लामाबाद.. सब हमारा होगा। पूरे पाकिस्तान का सूपड़ा साफ हो जाएगा। क्या मुशर्रफ, क्या जरदारी - एक-एक नछुत्तर को चुन-चुन कर मारेंगे।

यार मनमोहन! तुम्हारे पास भी वक्त कम है - उम्र अस्सी की, पद चार दिनों का, पैर कब्र मे, इसलिए उठो और ठोक दो पाकिस्तान को। समतल कर दो वहाँ की नापाक ज़मीन को और बढ़ा दो भारत का नक्शा। फिर तो चेपटे नाक वाले चीनी भी घबराएँगे।

तेवर तीखे रखोगे तो पड़ोसी तमीज़ से पेश आएँगे। चीर दो पाकिस्तान को, पूरा भारत तुम्हारा साथ देगा। ऐसा करने से तुम्हारी कायर पार्टी तिबारा सत्ता मे आ सकती है। जब पाकिस्तानी ज़मीन अपनी होगी, तब वहाँ नए शहर नए लोग बसाने के बहाने फिर करना लूट-खसोट!! कौन रोकेगा तुम्हें??

Tuesday, April 30, 2013

मनमोहन की चिंता


April 28, 2013

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संसद के ना चलने से चिंतित हैं। उनका कहना है दुनिया पूरा तमाशा देख रही है और हंस रही है। भई क्या बात है मनमोहन सिंह जी! आपको बड़ी चिंता है दुनिया की हँसी की? लेकिन यह निहायत ही अफ़सोसनाक बात है कि पूरा देश पिछले नौ सालों से आपकी नाकाबिलियत पर हंस रहा है फिर भी आपको कोई फ़र्क नही पड़ा। घर का जोगी जोगड़ा, बाहर का है संत?

मनमोहन जी! संसार की हँसी का आप कैसा मर्म निकाल रहे हैं, यह तो आप ही जानें परंतु सत्य कुछ और है। संसार आप पर इसलिए हंस रहा है क्योंकि आपके देश का एक निर्दोष नागरिक (सरबजीत सिंह) पिछले 22 सालों से पाकिस्तान की जेल मे सड़ रहा था और हाल ही मे उसपर प्राणघातक हमला हो गया, लेकिन आपको  नेहरू-गाँधी परिवार की तीमारदारी से फ़ुर्सत नही हैं।

विश्व के आठवें सबसे शक्तिशाली देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री जी, केवल कागजों मे शेर होने से कुछ नही होता, अपने घर-परिवार की रक्षा करने के लिए कलेजे की ज़रूरत होती है, जो आपके पास नही है। ऐसा दुस्साहस यदि कोई देश अमरीका के साथ करेगा तो अमरीका उसका विश्व-पटल से नक्शा ही समाप्त कर देगा।

संसार आपकी खिल्ली उड़ा रहा है क्योंकि आप देश की सुरक्षा कर पाने मे अक्षम हैं। कश्मीर का आधा से ज़्यादा हिस्सा पाकिस्तान खा गया, बचा हुआ यासीन मलिक और उसके सरीखे गद्दार खा रहे हैं, आप मौनी बाबा बनकर बैठे हैं। बरसों पहले, उत्तर-पूर्व प्रदेशों का हज़ारों किलोमीटर का क्षेत्र चीन खा गया, आपकी तत्कालीन सरकार हिन्दी-चीनी भाई-भाई का राग अलापती रह गई। अब चीन की नज़र लद्दाख पर गड़ गई है, और आप हैं कि पीठ पर छुरी भोंकने वाले चपटी नाकधारी चीनियों को कड़े तेवर दिखाने के बजाए आँख चुरा रहे हैं।

श्रीलंका जैसा लफंटूश राष्ट्र आपके देश पर दबाव बनाने मे इसलिए सफल हो जाता है क्योंकि आपको डर है कि आपकी 'ना' सुनकर वह चीन से हाथ मिला लेगा। नेपाल और बांग्लादेश जैसे अराजक राष्ट्र आपके देश मे हर वर्ष अपने हज़ारों नागरिक धकेल देते हैं और आपको मुँह चिढ़ाते हैं परंतु उनके विरुद्ध जब भी आप आवाज़ निकालते हैं, पता नही क्यों हमें म्याऊँ-म्याऊँ या में-में ही सुनाई देता है।

मनमोहन जी, अन्य राष्ट्र आपकी लाचारी का मज़ा ले रहे हैं क्योंकि जिस आध्यात्मिक भारत ने नारी को देवी का स्थान दिया वहीं आपके राज मे उसकी अस्मिता को चंद विकृत मानसिकता वाले नपुंसक दागदार कर रहे हैं। दुख तो इस बात का है कि देश की राजधानी मे महिलाएँ और बच्चे सुरक्षित नही हैं। आपका क्या है - आप तो ठाठ से चार-पाँच सौ सुरक्षाकर्मियों के बीच घिरे रहते हैं और हमारी मां, बहन, बहू और बेटियाँ पुलिस के साए मे भी स्वयं को असुरक्षित महसूस करती हैं। अरे! घर की लाज तो बचा नही सकते, देश की क्या खाक बचाओगे!!

समस्त संसार आपको देखकर इसलिए भी हंस रहा है क्योंकि आप अर्थशास्त्री होते हुए भी देश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर रहे हैं। सभी राष्ट्र इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि जिस व्यक्ति के लिए आपको अपनी कुर्सी छोड़ देनी थी उसे आपने राष्ट्रपति बनवा दिया और एक बारहवीं फेल लड़के को प्रधानमंत्री पद देने मे आपको कोई गुरेज़ नही। मनमोहन सिंह जी, ज्ञान और कर्म से धनी व्यक्ति बड़े-से-बड़े पद को भी अपने ठोकरों मे रखता है, पद की लालसा मे किसी की चापलूसी नही करता। 

दरअसल आपकी चिंता इस बात की है कि अगले चुनाव मे यदि आपको आपके दल ने प्रधानमंत्री का उम्मीदवार नही बनाया तो दुनिया की यह सोच कि - आप इटली के राशन दुकान वालों के हाथों महज एक कठपुतली हैं - सही साबित हो जाएगी। लेकिन आप ऐसी नौबत क्यों आन देना चाहते हैं? समय रहते चेत जाइए। अपनी बुद्धि का प्रयोग देश के उत्थान के लिए करें, किसी परिवार को खुश करने के लिए नही, अगले कुछ महीनों मे वो करके दिखाएँ जो कांग्रेसियों ने साठ सालों मे नही किया।  शायद देश का इतिहास आपको भी अटल की तरह स्मरण करेगा।

Tuesday, April 23, 2013

बलात्कारी को मौत से पहले यातना दो

April 23, 2013

पूरा देश एक स्वर मे माँग कर रहा है कि मासूम बच्ची का यौन शोषण करने वाले बलात्कारियों को फाँसी दे देना चाहिए। माँग जायज़ है। परंतु बलात्कार जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए फाँसी की सज़ा अपर्याप्त है। पुरुष-प्रधान नपुंसक समाज मे छुपे हवसी दरिंदों के हौसलों को पस्त करने के लिए यातना का प्रावधान आवश्यक है। यातना इतनी भयंकर होनी चाहिए कि कोई पुरुष किसी भी नारी के साथ दुष्कृत्य करने की हिम्मत ना करे।

कैसी यातना? यातना ऐसी जो मैं बता रहा हूँ - भले ही यह अव्यवहारिक लगे। पकड़ मे आते ही बलात्कारी का लिंग काट दिया जाए। फिर एक सप्ताह तक उसे जेल मे पीड़ित के परिवारवालों से पिटवाया जाए। उसके बाद उसके हाथ-पैर काट दिए जाएँ। एक सप्ताह तक दिन भर उससे भीख मँगवाया जाए और रात मे पीड़ित के परिवारवालों से फिर पिटवाया जाए। चूँकि जिस तरह उसने किसी की माँ, बहन, बहू या बेटी के साथ यौन शोषण किया उसके एवज मे यह यातना कुछ भी नही है, इसलिए उस बलात्कारी को अंतत: मगरमच्छों के तालाब मे फेंक देना चाहिए।

मैं मानता हूँ कि लोकतांत्रिक ढाँचे मे इस तरह की यातना संभव नही परंतु सरकार को कोई तो रास्ता निकलना होगा जिससे बलात्कार जैसे घटनाओं मे कमी आए। हाल ही मे सरकार ने नारी उत्पीड़न रोकने के लिए क़ानून बनाया लेकिन बलात्कार जारी है। यदि अपराधी क़ानून से डरते तो अपराध क्यों होता?

फिर भी, सरकार से बहुत ज़्यादा अपेक्षा करना ठीक नही। यदि सरकार कठोर क़ानून बनाएगी तो उन सभी नेता व उनके नाते-रिश्तेदारों का क्या होगा जो यौन शोषण मे लिप्त हैं।

रही पुलिस की बात - तो वह है सरकार की पिट्ठू। वह जनता को भयमुक्त करने के बजाए भयभीत करना पसंद करती है। पुलिस वो बला है जो शिकायतकर्ता को अपराधी साबित कर देती है और अपराधी को निर्दोष। इसलिए पुलिस जैसी चीज़ पर विश्वास करना ख़तरनाक है।

तो जनता करे क्या? केवल आंदोलनों अथवा विरोध से तो बलात्कारियों को सज़ा नही मिलेगी। विरोध भी कोई आख़िर कितने दिन करेगा? इसलिए ज़रूरत है समाज को बदलने की, स्वयं के आदत को बदलने की। नारी का अपमान हर क्षण हो रहा है, उसकी रक्षा का दायित्व हर पुरुष को लेना होगा। चाहे घर हो या बाहर, नारी पर बुरी नज़र रखने वाले को सबक सिखाना ज़रूरी है। नारी को उपभोग की वस्तु समझने वाले पुत्रों को प्रश्रय देने के बजाए परिवारवालों को उसकी ऐसी मरम्मत करनी चाहिए ताकि उसकी नज़रें कभी खराब ना हों।

नारी इस धरा की धरोहर है, मानव-समाज की आन है। उसकी अस्मिता देश की अस्मिता है। अब बलात्कार बंद होना चाहिए। यह समय जागने का है। समाज जागेगा तो यौन शोषण करने वाले स्वत: ही समाप्त हो जाएँगे, नेता कांपेंगे, पुलिस संभल जाएगी।

Laptop politics

April 23, 2013

These days, the state governments have started a new trend of distributing laptops to students. I reckon the students need jobs, not laptops. Isn't it a high time to check braindrain in states?

If you are in power, create jobs - be it in government departments or in private sector. Develop infrastructure. Take effective measures for this.

Once a student gets job, he will buy the laptop of his own choice.

Dear governments, don't play politics with students. If you really want to shape their career, secure their future by creating job opportunities.