Tuesday, August 9, 2011

ये ज़माना कुछ और है..



किसी वक्त
मोहब्बत
एक खूबसूरत खता थी
अब ये खता, खता ना रही
पर वो ज़माना कुछ और था
ये ज़माना कुछ और है

मोहब्बत के परवाने
इबादत की शमा जलाया करते थे
तब ज़ुल्फो के बादल थे
ये घटाओं का दौर है

हुस्न के दीदार को
आँखें तरस जाया करतीं थीं
तब चंद मुलाकात ही मुनासिब थे
यह मुलाक़ातों का दौर है


ताउम्र साथ न बँधने पर भी
मोहब्बत कम ना होती थी
कई रात आँखों मे कटते थे
इधर, ना मैं सोता था
ना उधर वो सोती थी
पर वो वादा निभाने का दौर था
ये वादाखिलाफी का दौर है

जिस्मानी नही, रूहानी वह
पाक मोहब्बत होती थी
तब दिलवालों की बस्ती थी
ये दिलफरेबों का ठौर है


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