भारत मे खेल
उच्च वर्ग का शौक है तथा मध्य व निम्न वर्गों के लिए प्रतिभा प्रदर्शन का माध्यम. लेकिन यहाँ क्रिकेट के अलावा देश
के लिए अन्य खेल खेलने का अर्थ है खोखली प्रतिष्ठा पाना और परिवारवालों को सड़क पर
लाना.
दरअसल साधारण
परिस्थिति मे असाधारण प्रतिभा को सहेजने वाले खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व बड़े
जोश मे करते हैं, परंतु जब हाथ मे पैसा आता है तो उनके होश फाख्ता हो जाते हैं. अचानक उन्हें अपना भविष्य
अंधकारमय लगने लगता है. वो एक क्षण मे अपना पूरा भविष्य देख लेते हैं और यह सोचकर काँप उठते हैं कि कहीं गले
मे स्वर्ण पदक लटकाकर आजीविका के लिए उन्हें आने वाले समय मे सड़कों पर फेरी ना
लगाना पड़े.
वहीं क्रिकेट
खिलाड़ियों को जैसे ही देश के लिए खेलने का अवसर मिलता है वे स्वयं को चौंसठ गुणों
से संपन्न कृष्ण के समतुल्य मानने लगते हैं. जब दर्शक उनकी सहजता से असहज महसूस
करने लगते हैं तब वो अपनी विराट प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं. आश्चर्य है कि ये हार कर भी करोड़ों कमाते हैं, फिर भी इनकी तकदीर का रोना जनता रोती है जैसे उसका सर्वस्व लुट गया हो.
अर्थात क्रिकेट
छोड़कर किसी भी अन्य खेल को अपनाना अपनी बेइज़्ज़ती कराना है. लेकिन ऐसे शौक फरमाने वालों की
फेहरिस्त बड़ी लंबी है. सुविधाहीन हालातों मे इनका अभ्यास एकलव्य की धनुर्तपस्या
से कम नही होता. परंतु ये भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को स्थापित कर लें, राष्ट्र इन्हें सदैव
पहचानने से इंकार करता रहेगा.
इनका बुढ़ापा
शास्त्रीय संगीत के महारथियों सा होता है, एकाकी और तकलीफ़देह. सरकार केवल अपनी सुध लेती है इसलिए इनकी तो लेने से रही.
बच जाते हैं परिवारवाले और पड़ोसी. वो भी इन्हें खरी-खोटी सुनाने से बाज़ नही आते
और गाहे बगाहे कहते रहते हैं कि ऐसे खेल खेलने का क्या मतलब जिसके एवज मे ग़रीबी, तंगी और बदहाली के दिन देखना पड़े.
वर्तमान मे सभी
खेल संस्थाओं को राजनेता चला रहे हैं. इसलिए मैदान के बाहर नेताओं के पेट फूले
रहते हैं और मैदान मे खिलाड़ियों के हाथ-पावं. खिलाड़ी समझने लगे हैं कि मैदान मे
प्रवेश का रास्ता चापलूसी है, कौशल नही.
आधुनिक युग मे
खेल और खिलाड़ी गौण हो गए हैं और इनपर हावी हो गया है बाज़ारवाद. मैदानों मे खेल
कम हो रहे हैं और आईपीएल जैसे तमाशे अधिक. बड़ी विडंबना है कि क्रिकेट के प्रसारण के लिए
अनेक टीवी चैनल्स हैं परंतु अन्य खेलों को दूरदर्शन मे चित्रहार की तरह दिखाया
जाता है.
क्रिकेट सभी
खेलों का बाप बन गया है और अन्य खेलों के अस्तित्व को तेज़ी से समाप्त कर रहा है. कोई आश्चर्य नही जब
भविष्य मे क्रिकेट को छोड़कर अन्य खेल सुनहरे अतीत के पन्ने बनकर केवल किताबों की
शोभा बढ़ाते हुए दिखें.
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