Sunday, May 29, 2011

जातिगत जनगणना: कितनी व्यावहारिक कितनी परिकल्पित

जातीय जनगणना का राजनैतिक कारण तो विदित है परंतु इसका दूसरा पहलू है सामाजिक विकास. 
इसे केंद्र सरकार कितनी गंभीरता से लेगी यह तो कोई नही जानता परंतु हम सब आम जन इससे लाभान्वित हो सकते हैं.
कैसे?   
सर्वप्रथम इस प्रक्रिया से हर जाति के विस्तार का अनुमान लगेगा. जातियों के विस्तार के अनेक मायने हैं.
जैसे प्रत्येक जाति के सामाजिक एवम् आर्थिक स्थिति का आंकलन होगा जिससे पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए प्रभावी उपाय किए जा सकेंगे.
हम जातियों के दायरॉ को अक्सर शहरों की सीमाओं तक ही विस्तृत मानते हैं. इससे होता यह है कि अनेक जातियों के लोग जो शहरों मे समृद्ध जीवन जी रहे होते हैं उनके रहन सहन से यह रायशुमारी बना ली जाती है कि पूरी की पूरी जाती ही समृद्ध है.
परंतु अधिकांश जातियों की वृहद जनसंख्या ग्रामीण भारत मे बसती है और उनके जीवनयापन के स्तर के आंकलन के पश्चात ही क्रिमी लेयर जैसे लाभ के नियमों मे पुनः संशोधन किया जा सकता है.
आरक्षण जातीय जनगणना का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू बन सकता है. राजनैतिक पार्टियों का बस चले तो आरक्षण का अतिक्रमण करने से नही चूकेंगे. परंतु आम जनता जिसे अब 'जागरूक जनता' का दर्जा दिया जा सकता है (कम से कम भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुटता दिखाने के बाद) वर्तमान परिस्थिति मे राजनेताओं को आरक्षण के तवे पर आसानी से रोटी सेकने नही देगी. जातीय जनगणना के बाद केंद्र यदि समस्त जातियों के विवरणों का खुलासा करती है तो जानकार (बुद्धिजीवी वर्ग) तथा आम जनता अपने अपने ढंग से इसका निष्कर्ष निकालेंगे.
तत्पश्चात आरक्षण के मुद्दे पर पुनः सार्थक बहस कराई जा सकती है ताकि इसकी नीतियों मे आवश्यक परिवर्तन किया जा सके और योग्य लोग यह लाभ ले सकें.
हो सकता है मेरी बातें परिकल्पित (हाइपोथेटिकल) लग रही हों परंतु किसी न किसी समय इसे व्यवहारिक करने की ज़िम्मेदारी केंद्र को लेनी होगी और यह तभी संभव है जब हम नागरिकगण ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी जानकारी पुख़्ता करेंगे और सामूहिक दबाव बनाएँगे.

Wednesday, May 18, 2011

फिर वहां होगा बसेरा, तुम जहां भी ले चलो..


तुम अगर दो साथ मेरा
मैं ज़माना छोड़ दूंगा
फिर वहां होगा बसेरा
तुम जहां भी ले चलो

महका करेगा ये चमन 
महकी करेंगी वादियाँ
अतृप्त उर की प्यास भी
बुझा के न थकेंगी नदियाँ 

गर प्रवाह जीवन का बनो तुम
संघर्ष करना छोड़ दूंगा
फिर वहां होगा बसेरा
तुम जहां भी ले चलो

फिर श्वांसें मेरी लय पा सकेंगी 
आँखें भी छलछला  सकेंगी
सर पे जो मेरे दामन हो तेरा 
नींदें भी मीठी आ सकेंगी

गर गोद में अपने, सर रख दो मेरा
मैं ख्वाब देखना छोड़ दूंगा
फिर वहां होगा बसेरा
तुम जहां भी ले चलो


पर राह में तुम मिल गईं, और मैं तुम्हारा हो गया..


मैं चला था चाह में
किसके, न था मुझको पता
पर राह में तुम मिल गईं
और मैं तुम्हारा हो गया

हासिल नहीं मैंने किया था
कुछ, अभी शुरुआत थी
मेरी तरुण वय की, ज़माने से
प्रथम मुलाकात थी

मैं ख्वाब किसके बुन रहा था
सकता नहीं तुमको बता
मैं पाँव किस पथ पर धरा था
भान मुझको कब था भला

कोपलों से फूल, प्रस्फुटित
निहारे, जैसे धरा
ऐसी ही सुरभित हवा में
श्वांस मग्न हो ले रहा था
पर राह में तुम मिल गईं
और मैं तुम्हारा हो गया

उल्लास में मन गा रहा था
प्रकृति भी प्रेम बरसाने लगी
ढूँढने मैं निकल पड़ा 
व्यक्तित्व निज की जानकर
आबोहवा भी पक्षियों के
कलरव से मदमाने लगी

कंटक मेरे पैरों में, बन संघर्ष 
चुभते थे यदा कदा
पर राह में तुम मिल गईं
और मैं तुम्हारा हो गया

छाएंगी अंतस में मेरे 
बाद्लें यूँ प्रीत की
बन फुहारें और मेरे, जीवन
में करेंगी नित झड़ा

सोच की इस मधुर-कल्पना में
फकत दुनिया से मैं
अनभिज्ञ था
पर राह में तुम मिल गईं
और मैं तुम्हारा हो गया





Tuesday, May 17, 2011

Stop abusing women..


Women are exploited all over the world. IMF chief Dominique Strauss-Kahn is just another guilty person who tried (or really?) to abuse a woman (a maid) at hotel. Don’t think that rape cases in West are less than the East. When it comes to women harassment, everyone competes – be it an Indian, American, Briton, Aussie, Japanese and so on.

Men fantasizing beautiful women and vice versa is natural. But what is this? If a man finds any woman desirable, why he becomes desperate to molest her? Why? Isn’t she a human who too deserves equal share on Earth as he does? And what the hack is in her flesh that he could not even refrain from using his masculine power on her? What if the same will happen to the female members of his family? He will kill the victimizer. The system of revenge is ubiquitous – whether West or East. Ah, the hypocrisy! The intelligentsia is gradually becoming illiterate.

In fact, it is time to teach everybody again that men and women are equal. Boys and girls are equal.

Please, don’t simply treat the females as commodities. Respect them. They are Mother. They are more close to God (or Goddesses themselves) because they give birth to a life. If the mankind (we never say womankind because it is male-dominated world) will keep on disregarding females, the society will no more remain civilized and we would start behaving (are behaving) as our stone-age predecessors.

Save girl child, protect women, bring peace and happiness in your own world. 

Tuesday, May 10, 2011

आमंत्रण



मेरी कल्पना के
सागर से,
जीवन की इस
जलधारा मे,
आओ,
फिर तुम,
फिर बहो

जिन स्वपनों को
तुमने देखा,
गृह-संसार की
खींची रेखा,
न लज़ाओ,
फिर तुम,
फिर कहो

बहुत धरा है
हमने धीर,
समझ सका न
कोई पीर,
कह जाओ,
मौन अब,
फिर न रहो

देवों को अर्पित
पुष्पहार,
तुमने किया
बारंबार,
स्नेहयुक्त माला
हमको भी,
पहनाओ,
अब तुम न डरो

कितने पग
तुमने,
हैं चले,
कितने पग
मैं भी चला,
जीवन का
है अंतिम
यह पग,
बढ़ाओ,
अब तो संग चलो

Sunday, May 8, 2011

जीवन और मृत्यु



जीवन के अंदर
है जीवन
मृत्यु के अंदर
मृत्यु सघन

क्या अंतस मे
बसी आत्मा
का अभिप्राय
है जीवन?

या स्मृति-पटल
मे अंकित
मिथ्या संसार
का सहज वरण?

क्या साँसों मे जो
लय होती है
और हृदय का
स्पंदन?

या शब्दों के
संसार परे
भावों का
प्रत्यर्पण?

नही ज्ञात मुझको
यह कि
किस तरह करूँ
इसका विवेचन

संभवतः प्रारंभ (सृष्टि)
और अंत (विनाश) की
सीमाओं मे है
इसका बंधन

Saturday, May 7, 2011

आतंक और भय



कही गहमाया हुआ
सा, वातावरण,
कही झुंझलाया हुआ
सा, कुंठित मन,
ऐसे में, कैसे बेफ़िक्र
रहे कोई,
जब दाँव लगा हो
हर जीवन

कैसा आतंक
है छाने लगा,
जो हवा का रुख़
बहकाने लगा,
अब सांसों पर भी
अधिकार यहाँ,
कोई इंसान अपना
जताने लगा

उठती लपटें
दरिंदगी की,
भस्म होती
पल-पल मानवता,
यहाँ ईच्छाओं
आशाओं का,
मुश्किल है बुनना
कोई स्वपन

ऐसे में, कैसे बेफ़िक्र
रहे कोई,
जब दाँव लगा हो
हर जीवन,

अब वाद्यों के सुर
छिन्न हुए,
सुमधुर आवाज़ें
क्रन्दित हुई,
अब कलमों के स्याह
लाल हुए,
कृतियों से विलग हुआ
स्पंदन,

अब ना रहा वो
घर जिसपर
इठलाते थे
तुम हरदम,
अब ना रहा वो
बाग जिसे
कहते थे तुम
सुंदर मधुबन

ऐसे में, कैसे बेफ़िक्र
रहे कोई
जब दाँव लगा हो
हर जीवन

अब ना रहे वो लोग
जिन्हे तुम
बतलाते थे
अपना गम,
अब ना रहा वो
शहर जहाँ
लहराता था
कभी चमन

अब तो केवल
जंगल की ही
भाषा बोली
जाती है,
अब तो हर मौसम
मे खून की
होली खेली
जाती है

ऐसे में, कैसे बेफ़िक्र
रहे कोई,
जब दाँव लगा हो
हर जीवन