Sunday, May 8, 2011

जीवन और मृत्यु



जीवन के अंदर
है जीवन
मृत्यु के अंदर
मृत्यु सघन

क्या अंतस मे
बसी आत्मा
का अभिप्राय
है जीवन?

या स्मृति-पटल
मे अंकित
मिथ्या संसार
का सहज वरण?

क्या साँसों मे जो
लय होती है
और हृदय का
स्पंदन?

या शब्दों के
संसार परे
भावों का
प्रत्यर्पण?

नही ज्ञात मुझको
यह कि
किस तरह करूँ
इसका विवेचन

संभवतः प्रारंभ (सृष्टि)
और अंत (विनाश) की
सीमाओं मे है
इसका बंधन

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