जीवन के अंदर
है जीवन
मृत्यु के अंदर
मृत्यु सघन
मृत्यु के अंदर
मृत्यु सघन
क्या अंतस मे
बसी आत्मा
का अभिप्राय
है जीवन?
या स्मृति-पटल
मे अंकित
मिथ्या संसार
का सहज वरण?
क्या साँसों मे जो
लय होती है
और हृदय का
स्पंदन?
या शब्दों के
संसार परे
भावों का
प्रत्यर्पण?
नही ज्ञात मुझको
यह कि
किस तरह करूँ
इसका विवेचन
संभवतः प्रारंभ (सृष्टि)
और अंत (विनाश) की
सीमाओं मे है
इसका बंधन
No comments:
Post a Comment