Saturday, May 26, 2012

महँगाई मार गई..


जनता फिर रो रही है। कारण - पेट्रोल के बढ़े हुए दाम। दरअसल जब-जब पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं, जनता रोने लगती है। कुछ समय के बाद उसके आँसू सूख जाते हैं। आख़िर कब तक रोएगी। मन-मारकर फिर मर-मर के जीने के लिए घर से बाहर निकलती है। सरकार जनता की इस आदत से वाकिफ़ है इसलिए वह भी बेरहमी से पेट्रोल हो या प्याज, दाम बढ़ाने मे कोई कोताही नही बरतती। जनता तिलमिलाती रहती और सरकार खिलखिलाती रहती है।

हाल ही मे पेट्रोल के दाम फिर बढ़ा दिए गए। जनता कराह रही है, सरकार से कह रही और कितना मारोगे हम तो पहले से ही मरे हुए हैं, जी रहे हैं तो केवल इसलिए कि नेताओं को भीड़ पसंद है। वरना लाशों की क्या गिनती और क्या इच्छा.

परंतु राजनीति मे सत्ता किसी एक ही की होती है, सबकी नही. इसलिए जो सत्ता मे नही होते वे कहते हैं कि वे भी जनता हैं। ठीक बात है। जिसके पास ताक़त नही, वह जनता और जो ताकतवर है वह सरकार। ये स्वयं को विरोधी दल निरूपित करते हैं और सरकार का पुरजोर विरोध करते हैं। आख़िर करेंगे ही, भई ऐसा करके ही तो सत्ता हासिल की जाती है।

ये विरोधी राजनीतिक दल चीख-चीखकर जनता से कहते हैं कि देखो सरकार की अदूरदर्शिता की वजह से पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं। मगर कोई इन जनता के ठेकेदारों को बताए कि पेट्रोल के दाम तो आसमान कई साल पहले ही छू चुके थे और अब बेचारा आसमान स्वयं पेट्रोल के दाम को छूने के लिए बेताब है। 

यदि आप इन विरोधी दलों से पूछेंगे कि फलाँ राज्यों मे आपकी सरकार है, क्या आप वहाँ पेट्रोल पर लगने वाला कर घटाकर जनता को राहत देंगे तो ये तपाक से कहेंगे कि केंद्र के पाप हम क्यों धोएँ। बात तो सही है। आपने ही जनता का भला करने का ठेका थोड़ी लिया है, जो सत्ता सुख भोग रहे हैं वे जानें। 

परंतु फिर ये विरोधी दल जनता से संवाद स्थापित की क्यों करते है? जब आपको जनता से कोई वास्ता ही नही है और आपके लिए जनता रोटी सेंकने की भट्टी से अधिक कुछ नही है तो भाड़ मे जाओ, बार-बार जनता के तलवे चाटने के लिए क्यों आते हो? 

यही विरोधी दल जनता से अपील करते हैं कि पेट्रोल के दाम के विरोध मे देश बंद कर दो। देश बंद भी होता है परंतु दाम कभी नही घटते। लाभ केवल इन राजनीतिक दलों को होता है क्योंकि ये चुनाव के वक्त जनता को गिना-गिना कर कहते हैं कि देखो जब तुम्हारे उपर संकट आया था तब हमने देश बंद करा दिया था, अब हमें तुम्हारी ज़रूरत है, हमे विजयी बनाओ। इन सत्तालोलूपों को केवल अपना सुख दिखता है, जनता का दुख नही। 

क्या आपने गौर किया है कि जब देश बंद का आव्हान किया जाता है तब भी समस्त सरकारी संस्थान, गैर-सरकारी संस्थान अपने दफ़्तर कभी बंद नही करते. बॅंक यथावत कार्य करते रहते है। रेलगाड़ियाँ चलती रहती हैं। अर्थात सरकार को कोई फर्क नही पड़ता बल्कि आम आदमी को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। दम है तो सरकारी कार्यों को बंद करा के दिखाओ। सरकार को चोट पहुँचेगी तभी तो वह जनता का दर्द समझेगी। परंतु विरोध दिखावा है। जनता को सब छलते हैं - फिर चाहे वह सरकार हो या विरोधी दल।

उधर सरकार अब डीजल और घरेलू गैस के दाम भी बढ़ाने की कवायद रही है। अरे सत्ताधारियों, शर्म करो! खुद तो सरकारी पैसों पर ऐश कर रहे हो और जनता को महँगी वस्तुएँ खरीदने को मजबूर कर रहे हो। किसने कहा था पेट्रोल के दाम को नियंत्रण मुक्त करने के लिए। अरे! जब किसी वस्तु पर नियंत्रण रखने का माद्दा नही है, तो कुर्सी छोड़ो। 

भारी-भरकम अर्थशास्त्रियों को मंत्री बनाकर रखे हुए हो जिनकी बातें ना तुम स्वयं समझते हो ना जनता। ये अर्थशास्त्री देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया मे सबसे ताकतवर बनाना चाहते हैं और वो भी जनता को आर्थिक रूप से भिखारी बनाकर। वाह रे ज्ञानियों! क्या यही पढ़े हो कि घर को रौशन करने के लिए पहले उसमे आग लगाओ फिर तमाशा देखो? लानत है ऐसी पढ़ाई पर। बड़ी-बड़ी बातें बंद करो और आम जनता की आम परेशानियों को दूर करो।

लेकिन सरकार और उसके अर्थशास्त्री मंत्रियों की मूर्खतापूर्ण बातों को सही ठहराने वाले बड़े-बड़े ज्ञानी आपको देश मे हर जगह मिलेंगे। ये ज्ञानी राष्ट्रीय अख़बारों मे, न्यूज़ चैनलों मे सरकारी निर्णयों को भविष्य का कदम बताते हैं। अरे! जो अभी जीवित है उसका वर्तमान बिगाड़कर उसे भविष्य के सपने दिखना कहाँ तक जायज़ है?

लेकिन सरकार और ये ज्ञान के भंडार ज्ञानी - इन्हें जनता की परेशानियों से कोई सरोकार नही है बल्कि ये केवल देश को कागजों मे सुदृढ़ करने की बात करते रहते हैं। यदि महँगाई कम करना ही है तो सरल तरीके अपनाओ और वह बातें करो जो आम आदमी समझता है। 

जितना खर्च सरकार नेताओं की सुरक्षा मे करती है यदि उस खर्च मे कटौती कर दे तो पेट्रोल के दाम बढ़ाने की आवश्यकता नही पड़ेगी। इस देश को ऐसे नेताओं की ज़रूरत नही है जो स्वयं सुरक्षित नही हैं। सरकार के खर्चे भी अनेक हैं। मंत्रियों, सांसदों और विधायकों पर अंधाधुंध पैसे खर्च किए जाते हैं। क्यों? ये सब तो जनता के सेवक हैं, इन्हें सरकारी पैसों की क्या ज़रूरत। इनकी सुविधाएँ ख़त्म करो, इनके पास वैसे भी बहुत पैसा है तभी तो राजनीति मे आए हैं। यह बात अलग है कि नेताओं को यदि सत्ता मे आने पर आर्थिक लाभ नही होगा तो वे राजनीति ही छोड़ देंगे। हम भी यही चाहते हैं। हमारा पैसा खाना छोड़ो और खुद कमाना सीखो। जब अपने पैसों से पेट्रोल खरीदोगे तभी जनता का दर्द समझ मे आएगा। 

सत्ता मे रहने वालों को मकान, वाहन आदि ना मिले तो सरकारी खर्च ऐसे ही आधा हो जाएगा। सभी सरकारी कार्यक्रम सादे तरीके से करो। क्यों आयोजनों मे देश का पैसा फूँकते हो? विदेश यात्रा करने वाले नेता कहते हैं उन्होने बहुत कुछ सीखा पर भारत मे ऐसी चीज़ों को लागू करना आसान नही है। यह बात सभी नेता कहते हैं। बंद करो ऐसी विदेश यात्राओं को जिनका लाभ जनता को नही मिलता। खर्च मे और कटौती होगी।

नेताओं के नाम पर जो ट्रस्ट चल रहे हैं उनके धन को सरकारी कोष मे जमा करो। जो मंत्री या नेता अधिक कमा रहे हैं उनके धन को जनता के कार्यों मे खर्च करो क्योंकि ये तो जनता के सेवक हैं, इन्हें दो जून भोजन के सिवा क्या चाहिए, बाकी समय तो ये केवल सेवा मे लगते हैं। आख़िर जो नेतागिरी मे घर-परिवार दरकिनार करने का दावा करते हैं उन्हें सभी सुखों से वंचित क्यों ना किया जाए? क्या ये कभी जनता के बारे मे सोचते हैं जो जनता इनके बारे मे सोचेगी? काफ़ी धन इकठ्ठा हो जाएगा फिर किसी आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ाने की ज़रूरत नही पड़ेगी।

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